रविवार, 30 मई 2010

कमीज

उड़ने लगा है रंग,
दिखने लगे हैं रेशे,
और रंगत खोने लगी है/
मेरी यह कमीज
अब पुरानी होने लगी है/
वह दूसरी  
जो मेरे मिजाज से
कम मेल खाती थी/
इसलिए यदा कदा ही
मेरे साथ बाहर जाती थी/
अब मेरे मन को
भाने लगी है/
इस कमीज से ज्यादा
खूबसूरत नजर आने लगी है/
वक़्त के साथ  अक्सर,   
स्नेह सम्बन्ध खो जाता है /
जिसके बिना
कभी पल नहीं कटता,
कभी सदियों सा दूर हो जाता है  /
मै इस कमीज से
वफ़ा का रिश्ता निभाऊंगा/
इसे हमेशा 
अपने वार्डरोब में सजाऊंगा/
आखिर दोनों सच्चाई हैं,
रिश्तों की अक्षुनता  भी
ओर वक़्त के साथ ढलना भी/
किसी का कमीज से रिश्ता बनाना,
किसी का रिश्तों को
कमीज की तरह बदलना भी /

पवन धीमान
+50938050683

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा प्रस्तुति, बधाई!

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  2. कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी

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  3. आखिर दोनों सच्चाई हैं,
    रिश्तों की अक्षुनता भी
    ओर वक़्त के साथ ढलना भी/
    किसी का कमीज से रिश्ता बनाना,
    किसी का रिश्तों को
    कमीज की तरह बदलना भी /
    " रिश्तो के एहसास और उनका बदलना और बदल जानी के बाद एक टीस छोड़ जाना.....बखूबी व्यक्त हुआ है."
    regards

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  4. दोनों सच्चाई हैं,
    रिश्तों की अक्षुनता भी
    ओर वक़्त के साथ ढलना भी
    किसी का कमीज से रिश्ता बनाना,
    किसी का रिश्तों को
    कमीज की तरह बदलना भी ... waah

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  5. Pavan ji,
    Kya khuub kha hai aap ne...
    kisi ka kameez se rishta bnna
    kisi ka rishton ko kameez kee trah badlna....
    Videshon main yeh sab ek shotee see baat mana jata hai...
    lakh-lakh sukr hai bhagvan ka ke hmaree sabheyta main yeh sab nahee....kameez kee trah rishte badlna...

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