शनिवार, 8 मई 2010

तन्हाईयाँ

तुमसे अब दर्दे सुखन आबाद है,
तुम नहीं हो तो तुम्हारी याद है।


रात की तन्हाईयाँ कुछ इस तरह
एक परिंदा और सौ  सय्याद हैं।


तुम्हारे बिन दुनिया अधूरी है मेरी,
तुम अगर हो, ख़ुशी है हर आह्लाद है।


हाँ मुझे मालूम है रस्मो- रिवाज
रब का दर पर, तेरे घर के बाद है।


प्रेम 'पवन' किसी तप से कम कहाँ है,
चैन की आहुति है, तड़फ का प्रसाद है।





3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम 'पवन' किसी तप से कम कहाँ है,
    चैन की आहुति है, तड़फ का प्रसाद है।
    वाह वाह

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  2. एक परिंदा और सौ सय्याद हैं।

    बहुत अच्छी पंक्तियाँ

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  3. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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