रिश्ते नातों के जंगल मे,
भटके हैं,लेकिन क्या पाये?
चलो किसी का दर्द बाँट लें ,
चलो किसी को गले लगाएं ,
बचपन का था खूब जमाना,
कच्ची छत और बैल पुराना,
मट्ठा,गुड और मकई की रोटी,
और पैदल स्कूल को जाना,
छूटे सारे संगी साथी,
अपने थे जो हुए पराये,
चलो किसी का दर्द ,,,,
जब आई अल्हड़ जवानी,
दिल अपना और प्रीत बेगानी,
आम की साखें, खुद से बातें,
भीगी यादें, बरसात का पानी,
साथ भी छूटा, ख्वाब भी टूटा,
अपनों ने कैसे बिसराए,
चलो किसी का दर्द ,,,,,
अब मै हूँ और मेरी तन्हाई,
काम मिला पहचान भी पाई,
चाँद माँगते बच्चे के मानिंद,
खुशियाँ लेकिन रही पराई,
सपनों मे आता है वो बचपन,
जो गिरता पड़ता दौड़ा जाये,
चलो किसी का दर्द बाँट लें,
चलो किसी को गले लगाएं ।
चलो किसी का दर्द बाँट लें -- कुछ ऐसे ही भाव अनायास अपनी ओर आकर्षित करते हैं... काश हम सब इसी भाव में डूब जाएँ तो मानवता की खूबसूरती को चार चाँद लग जाएँगे...
जवाब देंहटाएंmanavata ka yahi takaza
जवाब देंहटाएंdard baant len aadha-aadha.
dr a kirti vardhan
09911323732
पहली बार आया हूँ इस गली
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा
आपके ज़ज्बात पढ़कर
कुछ अपना सा लगा
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
जवाब देंहटाएंहली बार आया हूँ इस गली
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा
आपके ज़ज्बात पढ़कर
कुछ अपना सा लगा
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
http://sanjaybhaskar.blogspot.com