संजीदगी से जिन्दगी को जब जिया है मैंने,
खुद को बेबस बड़ा, महसूस किया है मैंने.
ताश के पत्तों सा देखा है ढहते महलों को,
बस्तियों को मरघट होते देख लिया है मैंने.
होश में चुभते हैं, दुनिया के कई तौर तरीके,
चैन का जाम मदहोशी में ही पिया है मैंने.रौशनी देगा, बुझेगा या जलाएगा सब कुछ,
तुफानो में जलता, रख छोड़ा 'दिया' है मैंने.
दरिया की मर्जी पर, छोड़ा जबसे कश्ती को,
जिन्दगी को तब 'पवन' भरपूर जिया है मैंने.
वाह क्या बात कह दी आपने,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,बधाई हो।अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आके।
जवाब देंहटाएंDhanyavaad Harshita ji.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चित्रों के साथ मन के भावों को बहुत सुन्दर लिखा है...
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