दिल है उसके पास जो मुझसे बहुत दूर है/
मैंने ना देखा उसे, उसने ना देखा मुझे,
उसके मेरे चर्चे इस शहर में मशहूर हैं/
उसकी तस्वीर से पूछा मैंने एक दिन,
मैंने चाहा तुझे, क्या तुझे यह मंजूर है?
पर नजर खामोश उसकी, लब खामोश,
पता नहीं इकरार है, या हुस्न पर मगरूर है/
शायद हमें सताने की यह अदा है उनकी,
वर्ना दिल में इतनी चाह, उनके भी जरूर है/
नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है/
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जवाब देंहटाएंनहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
जवाब देंहटाएंये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है
....... लाजबाव !!!
kya kahe?
जवाब देंहटाएंkeep it up..........
जवाब देंहटाएंबेहतर...
जवाब देंहटाएंनहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
जवाब देंहटाएंये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है/
"सच कहा इश्क और हुस्न का यही दस्तूर है"
regards
आफरीन...
जवाब देंहटाएंNice shayaries ....
जवाब देंहटाएंJija ji, Your Kavita is saying more than words.... Hats off ......
जवाब देंहटाएंThanks
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Yogesh