गुरुवार, 27 मई 2010

बहुत दूर है...

यह  कैसी सजा यह कैसा दस्तूर है/
दिल है उसके पास जो मुझसे बहुत दूर है/

मैंने ना देखा उसे, उसने ना देखा मुझे,
उसके मेरे चर्चे इस शहर में मशहूर हैं/

उसकी तस्वीर से पूछा मैंने एक दिन,
मैंने चाहा तुझे, क्या तुझे यह मंजूर है?

पर नजर खामोश उसकी, लब खामोश,
पता नहीं इकरार है, या हुस्न पर मगरूर है/

शायद हमें सताने की यह अदा है उनकी,
वर्ना दिल में इतनी चाह, उनके भी जरूर है/

नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है/

11 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  3. नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
    ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है
    ....... लाजबाव !!!

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  4. नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
    ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है/
    "सच कहा इश्क और हुस्न का यही दस्तूर है"
    regards

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  5. Jija ji, Your Kavita is saying more than words.... Hats off ......

    Thanks
    ------
    Yogesh

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