शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

विरह वेदना

देखकर
पूर्णमासी के चाँद की ओर/
और विरह की सम्भावना
का पकड़कर छोर /
तुमने कहा था
कि चाँद का यह रूप
तुम्हे मेरी उदिग्नता की खबर देगा/
और तुम्हारा प्यार
मेरे सब जख्म भर देगा/
लेकिन दूरियों के 
बदले समीकरण में,
चाँद जब तुम्हारी छत से
चलकर मेरे पास आता है,/
दो घडी ओझल होकर
संकेत से मुझे बताता है /
कि तुम लजाकर
मेरा प्रणय निवेदन
स्वीकार कर रही थी/
धवल चांदनी सी बिखरकर
मुझे प्यार कर रही थी/
हर शाम
चांदनी की आहट होते ही
मै खुद से बाहर निकल आता हूँ/
मुस्कान बिखेरता हूँ,
दर्द छिपाता हूँ/
मै नहीं समझता
कि यह मेरी विरह वेदना
जान पाता है/
प्रिय!
यह डाकिया
मेरे बारे में क्या बताता है?