हर सुबह
दौड़ की बेला,
ज्यों
जाना हो
क्षितिज के छोर/
आशियाना
बदल बदल कर
थक गया हूँ,
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/
लगता है कि
पूर्व जनम में,
रहे होंगे
ऐसे संस्कार/
किसी वृक्ष की
साख तोड़ ली,
कोई घोंसला
दिया उजार/
तितली के
पर फाड़े होंगे,
किसी के जख्म
उघाड़े होंगे,
भाया नहीं होगा ,
नाचता मोर/
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/
दाना चुगती
गिलहरी को,
पत्थर कभी
मारा होगा/
वृक्ष पर
टंगे घोंसले से
तिनको को कभी
उतारा होगा/
घर लाये थे
जो मृग शावक/
जननी से विछोह,
सदैव पीड़ादायक/
बन गया था
ममता का चोर /
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/
बस भी करो
प्रभु मेरे,
मन को मेरे
विश्राम दे दो/
बचपन को
माफ़ भी कर दो
नासमझी को
अभयदान दे दो/
या मुझको
कर दो संवेदनहीन /
या जीने दो
उत्सव में लीन /
मन नाचे
हो तन विभोर/
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील रचना....कहते हैं ना की पूर्वजन्म के कर्म होते हैं ..कुछ उसी को आधार बना कर लिखी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजीने दो
जवाब देंहटाएंउत्सव में लीन /
मन नाचे
हो तन विभोर/
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और !
सुन्दर शब्द रचना, बेहतरीन ।
लगता है कि
जवाब देंहटाएंपूर्व जनम में,
रहे होंगे
ऐसे संस्कार/
किसी वृक्ष की
साख तोड़ ली,
कोई घोंसला
दिया उजार/
तितली के
पर फाड़े होंगे,
किसी के जख्म
उघाड़े होंगे,
भाया नहीं होगा ,
नाचता मोr......
Pavan ji bahut sunder shbd snyojan kiya hai .....bdhai ....!!
Nice expression bro.. congrats.
जवाब देंहटाएंकिया लिखा ही जीजा जी ! वहा वहा :)
जवाब देंहटाएंहर सुबह
जवाब देंहटाएंदौड़ की बेला,
ज्यों
जाना हो
क्षितिज के छोर/
आशियाना
बदल बदल कर
थक गया हूँ,
सुन्दर रचना..
wah sir..pahli baar yahan aayi aur fan ho gayi :)
जवाब देंहटाएंलाजबाब
जवाब देंहटाएंबस भी करो
जवाब देंहटाएंप्रभु मेरे,
मन को मेरे
विश्राम दे दो/
बचपन को
माफ़ भी कर दो
नासमझी को
अभयदान दे दो/
या मुझको
कर दो संवेदनहीन /
या जीने दो
उत्सव में लीन /
मन नाचे
हो तन विभोर/
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/
bas bhi karo ...... vishraam .....de do yaa kar do samvedanheen kar do ..... ek ek shabd dil ko chhute gaya