गुरुवार, 17 मार्च 2011

यथार्थ


जिंदगी की उड़ान

कारवां मेरा भी होता आज तब मंजिल के पास,
भोर होते चला होता, मंजिल की जानिब मै काश!

जज्बातों से क्या मिला, मंजिल मिली ना रास्ता,
तन्हाई में आंखे रोई, अक्सर रहा ये दिल उदास.

जिन्दगी भर चलता रहा, आज मगर पहुंचा वहां,
रंजो-गम-खुशियाँ कम, उथली जमीं-धुंधला आकाश.

सय्याद के रहमो करम पर कायम है जैसे वजूद,
मुहलत पर टिकी सांस, जिन्दगी चलती फिरती लाश.

एक परिंदा- एक दरिंदा, उड़ रहें हैं साथ-साथ,
एक को जीने की ख्वाहिश, एक को लहू की प्यास.

हिम्मत करके एक बाजी खेल जाएँ चल 'पवन'
हार जाने से बदतर है, हार मानने का एहसास.....

पवन धीमान
+918010369771











4 टिप्‍पणियां:

  1. सय्याद के रहमो करम पर कायम है जैसे वजूद,
    मुहलत पर टिकी सांस, जिन्दगी चलती फिरती लाश.
    बहुत ही खुबसूरत शेर, दाद का मोहताज नहीं पर दिल ने कहा बहुत खूब .

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  2. sunadr
    ek parinda ud raha ek ko jeene ki khahish ,ek ko lahu ki pyas
    adbhut ghare bhaav
    ghari rachna

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  3. हिमत करके एक बाजी खेल जाए बहुत खूब ...............धन्यवाद

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