गुरुवार, 27 मई 2010

बहुत दूर है...

यह  कैसी सजा यह कैसा दस्तूर है/
दिल है उसके पास जो मुझसे बहुत दूर है/

मैंने ना देखा उसे, उसने ना देखा मुझे,
उसके मेरे चर्चे इस शहर में मशहूर हैं/

उसकी तस्वीर से पूछा मैंने एक दिन,
मैंने चाहा तुझे, क्या तुझे यह मंजूर है?

पर नजर खामोश उसकी, लब खामोश,
पता नहीं इकरार है, या हुस्न पर मगरूर है/

शायद हमें सताने की यह अदा है उनकी,
वर्ना दिल में इतनी चाह, उनके भी जरूर है/

नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है/

12 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

    जवाब देंहटाएं
  3. मन के भावों को खूबसूरती से अभिव्यक्त करती उम्दा गजल.......शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
    ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है
    ....... लाजबाव !!!

    जवाब देंहटाएं
  5. नहीं गुनाहगार मै, ना खता उसकी 'पवन'
    ये उसके हुस्न और मेरे इश्क का कसूर है/
    "सच कहा इश्क और हुस्न का यही दस्तूर है"
    regards

    जवाब देंहटाएं
  6. Jija ji, Your Kavita is saying more than words.... Hats off ......

    Thanks
    ------
    Yogesh

    जवाब देंहटाएं