बुधवार, 25 अगस्त 2010

चिरायु चाहत

चाहता था और चाहता हूँ अभी तक
ख्यालों में तस्वीर बनाता हूँ अभी तक

वह पराया गीत है अब , जानता हूँ,
तन्हाइयों में गुनगुनाता हूँ अभी तक.

दिल लगाने क़ी खता एक बार की थी,
सजा मगर हर रोज पाता हूँ अभी तक,

कोई चिड़िया पेड़ पर जब घोसला बनाती है,
तिनके आसपास, रखके आता हूँ अभी तक.

चाहता था और चाहता हूँ अभी तक......





12 टिप्‍पणियां:

  1. कोई चिड़िया पेड़ पर जब घोसला बनाती है,
    तिनके आसपास, रखके आता हूँ अभी तक!

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    पूरा महाकाव्य तो
    उपरोक्त दो पंक्तियों में ही समाया हुआ है!

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  2. दिल लगाने क़ी खता एक बार की थी,
    सजा मगर हर रोज पाता हूँ अभी तक,
    ...vaah chhoti magar sundar rachna.

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  3. दिल लगाने क़ी खता एक बार की थी,
    सजा मगर हर रोज पाता हूँ अभी तक ...

    बहुत खूब ... ये तो इश्क़ में होना ही है .... लाजवाब शेर है ....

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  4. सकारात्मक विचार लिए सुंदर रचना....

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  5. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर रचना , बधाई ......

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