मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

दर्द छिपाने का जिनको शऊर मिलता है।
उनके हिस्से में कोई ग़म जरूर मिलता है।

किसी के होठों पे हंसी बारहा नहीं मिलती ,
दिल ज़ब्त करे तब चेहरे पे नूर मिलता है।

बचपना करने का मन है तो कैसी झिझक,
होशमंद चेहरों पे शिकन या गरूर मिलता है।

पास वो होते हैं तो शिकवे गिले भी होते हैं,
रूमानी ईश्क़ किस्सों में या दूर दूर मिलता है।

भला वक़्त है ,हमदर्द भी हैं, तो सहेज कर रखें, 
सफर खुशग़वार कभी, कभी क्रूर मिलता है।

सेहन के 'बर्ड हाउस ' में परिंदा जब नहीं आता ,
मेरे घर लौटने पर घर बहुत मजबूर मिलता है।

                                 - पवन धीमान
                                   २७. १२. २०१६ 

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