बुधवार, 19 मई 2010

'फ़ुर्र'

शुक्रवार की देर रात मै दिल्ली से घर लौटा । सुबह बरामदे मे इधर उधर पड़े तिनको और रोशनदान मे निर्माणाधीन घोंसले ने बरबस ही ध्यान खींचा । दूसरे कोने पर बैठी एक चिड़िया माहोल का जायजा ले रही थी। संभवत: हमारी प्रतिक्रिया के प्रति वह आशंकित थी। मैंने तिनके बटोरकर घोसले के पास रख दिये और अपने दैनिक कार्यों मे व्यस्त हो गया ।


घर मे नए प्राणी का आगमन हमे रुचिकर लगा। कुछ दिनो मे हम तीनों प्राणी एक दूसरे के स्वभाव से परिचित हो गए । मुझे घोसले के आस पास बिखरे तिनके बटोरने की, गृह स्वामिनी को दाना पानी रखने की और ..... को निश्चित होकर घर मे और यदा-कदा हमारे कंधो पर फुदकने की आदत हो गई। पत्नी ने उसका नामकरण किया - 'फ़ुर्र'.

बच्चो और आगुन्तकों के लिए 'फ़ुर्र' की निश्चिंतता कोतूहुल का विषय थी और हमारे लिए वह हमारे परिवार का अभिन्न अंग । घर की रंगाई पुताई के दौरान 'फ़ुर्र' के घोंसले को कोई हानि न पहुँचे इसका विशेष ख्याल रखा गया।

कुछ समय बाद मेरा स्थानांतरण हो गया। धान की रोपाई के वक्त हम अपना बोरिया बिस्तर समेटकर नई दिशाओं की ओर चल पड़े। विकास प्रक्रिया मे धान को एक खेत से उखाड़कर दूसरे खेत मे रोपना लाजिमी है, लेकिन उखाड़ने और लगाने की प्रक्रिया के दौरान की पीड़ा को एक नव विवाहिता या फिर स्थानांतरणाधीन कर्मचारी से बेहतर भला कौन समझ सकता है?

नव तैनाती स्थल की फिज़ाएँ दिल्ली से बहुत अलग थी । आतंकवाद चरम पर था। भाड़े के रक्त पिपासु आतंकवादी स्थानीय देशभक्त जनता के नर संहार और सुरक्षा बलों के शिविर पर कायराना हमले को आजादी की जंग कहते। धरती के स्वर्ग की मासूमियत धमाको मे कहीं गुम हो गई थी। जिंदगी संगीनों के साये मे थी । नयी परिस्थितियों से सामंजस्य बिताने मे कुछ वक्त लगा, लेकिन मानव स्वभाव के अनुरूप अंतत ज़िंदगी पटरी पर दौड़ने लगी।

लगभग चार माह बाद पारिवारिक विवाहोत्सव मे सम्मिलित होने के लिए हम घर लौटे तो घर मे कुछ अधूरा सा लगा। घोसला यथावत था , लेकिन उसमे जीवन का स्पंदन नहीं था । 'फ़ुर्र' की परिचित सी चहलक़दमी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी । घर के अंदर पड़े पुराने अख़बार की सुर्खियाँ थी - " अधेड़ पड़ोसी द्वारा अबोध मासूम बच्ची की न्रशंस  हत्या "। 'फ़ुर्र' की निश्चिंतता ने उसे किसी बिलाव का ग्रास न बना दिया हो , इस आशंका से मन द्रवित हो उठा।

मै खुद को समझाता हूँ कि अकेलेपन से उकताकर उसने घर बदल लिया होगा। एक दिन 'फ़ुर्र' के परिचित कदम अपने परित्यक्त नीड़ कि और लोटेंगे, इसी प्रतीक्षा मे हूँ।

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