मंगलवार, 22 जून 2010

अब नहीं और..

हर सुबह
दौड़ की बेला,
ज्यों
जाना हो
क्षितिज के छोर/
आशियाना
बदल बदल कर
थक गया हूँ,
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/


लगता है कि
पूर्व जनम में,
रहे होंगे
ऐसे संस्कार/
किसी वृक्ष की
साख तोड़ ली,
कोई घोंसला
दिया उजार/
तितली के
पर फाड़े होंगे,
किसी के जख्म
उघाड़े होंगे,
भाया नहीं होगा ,
 नाचता मोर/
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/

 दाना चुगती
गिलहरी को,
पत्थर कभी
मारा होगा/
वृक्ष पर
टंगे घोंसले से
तिनको को कभी
उतारा होगा/
घर लाये थे
जो मृग शावक/
जननी से विछोह,
सदैव पीड़ादायक/
बन गया था
ममता का चोर /
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/


बस भी करो
प्रभु मेरे,
मन को मेरे
विश्राम दे दो/
बचपन को 
माफ़ भी कर दो 
नासमझी को
अभयदान दे दो/
या  मुझको 
कर दो संवेदनहीन /
या जीने दो  
उत्सव में लीन / 
मन नाचे
हो तन विभोर/
दिल कहता है,
बहुत हुआ,
अब नहीं और/



बुधवार, 16 जून 2010

आकांक्षाए और जीवन

आदमी के लिए
जरुरी है;
खाने को दाल रोटी,
पहनने को कपडा,
रहने को मकान
और
जीने  के लिए प्रेम,
पर
कष्टमय  है
जीवन
क्योंकि
प्रेम विहीन  है
और भी
सब कुछ पाने की
लालसा में
और जानने को  
यह  सच
अपने अनुभव से /

रविवार, 13 जून 2010

जीवन..... पुनर्निर्माण के दौराहे पर

                                                      पिछली पोस्ट से लगातार (५)
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/
जिंदगी के साथ साथ
जनम लेते हैं सपने,
सपनो के साथ चलती
जिंदगी हमारी है/

सत्तर की वय  से आगे,
सपनो से हम भागें,
जिंदगी ही सपने
की तरह गुजर गयी /
बोझ सी लगने लगी 
अपनी ही काया जैसे,
जीने की चाह भी
मन से उतर गई/
सब इंतज़ार में हैं,
अब टूटी, तब फूटी,
काया की गागर
लबालब भर गई/
आंखे खुली रह गई
सपनो में खोई सी,
सपने मरे नहीं
लो काया मर गई/
दो दिल फिर मिलेंगे,
फिर होगा एक जनम
सपनो का सफ़र
रुका नहीं जारी है....
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/

शनिवार, 12 जून 2010

जीवन .. जिम्मेदारियों के बोझ तले

                                           (४) ......पिछली पोस्ट से लगातार
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/
जिंदगी के साथ साथ
जनम लेते हैं सपने,
सपनो के साथ चलती
जिंदगी हमारी है/


पचास की आई वय,
सपनो की टूटी लय,
जिम्मेदारिया खड़ी हैं
बाहें फैलाये/
लोगों के दरवाजे पर
दस्तक दे रहा है बाप,
बेटी बड़ी हो गई है,
लड़का बताएं /
बेटा बहु अपनी ही
दुनिया के हो गए है,
कोई उनसे कहे,  
बाप का हाथ बटाएँ /
रिश्तो का घरोंदा
टूटता सा दीखता है,
अपने ही हो गए,
कितने पराये/
जीवन के रंग
फीके होते दीखते हैं,
जिम्मेदारियों का बोझ,
जिन्दगी पर भारी है/
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है...





शुक्रवार, 11 जून 2010

जीवन... यौवन की दहलीज पर

                                            (३).... पिछली पोस्ट से लगातार
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/
जिंदगी के साथ साथ
जनम लेते हैं सपने,
सपनो के साथ चलती
जिंदगी हमारी है/


आया सौलहवा बसंत,
लाया सपने अनंत,
सपने जैसे
सतरंगी हो जाते है/
कोयल की कूक  
आमंत्रण लगती है  ,
फूल इशारे देकर
भँवरे को बुलाते है/
तन मन में मदहोशी
सी छा जाती है ,
सपनो में हँसते हैं,
सपनो में गाते हैं/
सपनो में चाँद तारे
तोड़ लाते हैं कभी,
कभी चाँद को
अपने पहलु में सुलाते हैं/
घोड़े पर सवार होकर
जाते हैं  सपनो के देश ,
सपनो में आती 
एक राजकुमारी  है/
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/.....








गुरुवार, 10 जून 2010

बचपन ...स्कूल की तरफ

                                                (२)   ......पिछली पोस्ट से लगातार  


पांचवा बरस जो आया,
माँ ने बस्ता सजाया,
कहती है बेटा
स्कूल भी जाना है/
पढना है, लिखना है,
अच्छा बेटा बनाना है,
पढ़े लिखे लोगों की,
जेब में ज़माना है/
जिम्मेदारिया बताती माँ,
सपने सजाती माँ,
"बेटा तुझे माँ को
परदेस घुमाना है"/
बेटा कहता है,
माँ कैसे छोड़ जाऊ तुझे,
माँ डांटती है,
यह कैसा बहाना है?
बस्ते के बहाने
कंधो की परीक्षा है,
कन्धों पर बोझ डालने की
तैयारी है/
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/
                                                       ...........यौवन  अगली  पोस्ट  में  

बचपन... माँ की गोद में

खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर,
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है/
जिंदगी के साथ साथ
जनम लेते हैं सपने,
सपनो के साथ चलती
जिंदगी हमारी है/

जीवन का पहला साल,
सपनो से मालामाल,
माँ की गोद मीठी
मीठी लोरिया सुनाती है/
बच्चे के साथ,
बच्चा बन जाती है माँ,
हंसती है, गाती है,
कभी तुतलाती है /
दुसरे बरस में
धुल देती है न्यौता ,
खेलने को अपने
पास बुलाती है/
तीसरे बरस में
चोटी गुंथती है माँ,
माथे पर काजल का
टीका लगाती है/
हंसा नहीं रोया नहीं,
खाया नहीं,सोया नहीं,
क्या क्या कहके
माँ ने नजर उतारी है/
खट्टी मीठी जिंदगी के
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर
मीठे मीठे सपनो की
बात ही न्यारी है.....

                                        ......जारी

मंगलवार, 1 जून 2010

आदमी भला सा लगता है.

जिसके चारों तरफ एक जलजला सा लगता है/
वक़्त बुरा है मगर आदमी भला सा लगता है/

हँसते हँसते उड़ा देता है दुनिया भर के गम,
देखने में यूँ बड़ा वह मनचला सा लगता है/

जिन्दगी किस मोड़ पर क्या रंग बदले कौन कहे,
पत्थर भी कभी कभी गुड का डला सा लगता है/

गम से घिरा है फिर भी कमल के जैसा है,
इसका बचपन दुश्वारियों में पला सा लगता है/

वह अमीरे शहर तो बस अपने साथ जीता है,
खुशनसीब है जो सबसे मिला-जुला सा लगता है/

पवन धीमान
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